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सं यं स्तुभो॒ऽवन॑यो॒ न यन्ति॑ समु॒द्रं न स्र॒वतो॒ रोध॑चक्राः। स वि॒द्वाँ उ॒भयं॑ चष्टे अ॒न्तर्बृह॒स्पति॒स्तर॒ आप॑श्च॒ गृध्र॑: ॥

English Transliteration

saṁ yaṁ stubho vanayo na yanti samudraṁ na sravato rodhacakrāḥ | sa vidvām̐ ubhayaṁ caṣṭe antar bṛhaspatis tara āpaś ca gṛdhraḥ ||

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Pad Path

सम्। यम्। स्तुभः॑। अ॒वन॑यः। न। यन्ति॑। स॒मु॒द्रम्। न। स्र॒वतः॑। रोध॑ऽचक्राः। सः। वि॒द्वान्। उ॒भय॑म्। च॒ष्टे॒। अ॒न्तः। बृह॒स्पतिः॑। तरः॑। आपः॑। च॒। गृध्रः॑ ॥ १.१९०.७

Rigveda » Mandal:1» Sukta:190» Mantra:7 | Ashtak:2» Adhyay:5» Varga:13» Mantra:2 | Mandal:1» Anuvak:24» Mantra:7


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

Word-Meaning: - बुद्धिमान् विद्यार्थीजन (स्तुभः) जलादि को रोकनेवाली (अवनयः) किनारे की भूमियों के (न) समान (समुद्रम्) सागर को (स्रवतः) जाती हुई (रोधचक्राः) भ्रमर मेढ़ा जिनके जल में पड़ते उन नदियों के (न) समान (यम्) जिस अध्यापक को (सम्, यन्ति) अच्छे प्रकार प्राप्त होते हैं (सः) वह (तरः) सर्व विषयों के पार होने (गृध्रः) और सबके सुख को चाहनेवाला (विद्वान्) विद्वान् (बृहस्पतिः) अत्यन्त बढ़ी हुई वाणी वा वेदवाणी का पालनेवाला जन उसको (उभयम्) दोनों अर्थात् व्यावहारिक और पारमार्थिक विज्ञान का (चष्टे) उपदेश देता है तथा (अन्तः) भीतर (च) और बाहर के (आपः) जलों के समान अन्तःकरण की और बाहर की चेष्टाओं को शुद्ध करता है, वह सबका सुख करनेवाला होता है ॥ ७ ॥
Connotation: - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे सबका आधार भूमि सूर्य्य के चारों और जाती है वा जैसे नदी समुद्र को प्रवेश करती है, वैसे सज्जन श्रेष्ठ विद्वानों और विद्या को प्राप्त हो धर्म में प्रवेश कर बाहरले और भीतर के व्यवहारों को शुद्ध करें ॥ ७ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

पुनस्तमेव विषयमाह ।

Anvay:

बुद्धिमन्तो विद्यार्थिनः स्तुभोऽवनयो न समुद्रं स्रवतो रोधचक्रा न यमध्यापकं संयन्ति स तरो गृध्रो विद्वान् बृहस्पतिस्तानुभयं चष्टे। अन्तर्बहिश्चाप इवान्तःकरणबाह्यचेष्टाः शोधयति स सर्वेषां सुखकरो भवति ॥ ७ ॥

Word-Meaning: - (सम्) सम्यक् (यम्) (स्तुभः) स्तम्भिकाः (अवनयः) तटस्था भूमयः (न) इव (यन्ति) गच्छन्ति (समुद्रम्) सागरम् (न) इव (स्रवतः) गच्छन्त्यः (रोधचक्राः) रोधाश्चक्राणि च यासु ता नद्यः। रोधचक्रा इति नदीना०। निघं० १। १३। (सः) (विद्वान्) (उभयम्) व्यवहारपरमार्थसिद्धिकरं विज्ञानम् (चष्टे) उपदिशति (अन्तः) मध्ये (बृहस्पतिः) बृहत्या वाचः पालयिता (तरः) यस्तरति सः (आपः) (च) (गृध्रः) सर्वेषां सुखमभिकाङ्क्षकः ॥ ७ ॥
Connotation: - अत्रोपमालङ्कारः। यथा सर्वाधारा भूमयः सूर्य्यमभितो गच्छन्ति यथा नद्यः समुद्रं प्रविशन्ति तथा सज्जना आप्तान् विदुषो गत्वा विद्यां प्राप्य धर्ममनुप्रविश्य बहिरन्तर्व्यवहारान् शोधयेयुः ॥ ७ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा सर्वांचा आधार असलेली भूमी सूर्याभोवती प्रदक्षिणा घालते, जशी नदी समुद्रात प्रवेश करते तसे सज्जन श्रेष्ठ विद्वानांनी विद्या प्राप्त करून धर्मात प्रवेश करून आत-बाहेरचा व्यवहार शुद्ध ठेवावा. ॥ ७ ॥